हुई शाम तो ये जाना हमने तन्हाईयों की कुछ और अमोली सज गई हमारे दरिचें में अब देखे सुबह की बेल इनअमोलियों को पका सकी तो ठीक है नही तो जी लेगे हम जैसे जिए जाते हैं