कितना बेबस सा
मन के दरम्यान प्रफुलित
हर अरमान मुझको ,
रंगीनियों में सजाकर
स्वपन डोली में ,
इक रति अंकुर रहा हैं
ठहर जाती हु मैं
तेरी रुदादी लकीरों में ,
और उसपे तेरे
पैमानिक सी आशिकी
कितना बेबस सा
दिल की रुबाईयों पे भी
अंकुश धर जातें हैं
तुझमें मेरा होना
जैसे साँसों की करवटों पे
मेरी धडकनों का अलसाना
मेरे दिल की तराईयों में
हर पल तेरा स्पंदन हैं
लेकिन तुझमें मेरा होना
कितना बेबस सा ......
तेरे मेरे बीच ये
जो बनकर आया था बेनामी सा ,
अब मिली तो जमीं सी
तेरे ही सरहदी दिल के
कोनेभर में
तू परखता रहा
मेरे सुरूर का अंत
आखिर लौटा तू
कितना बेबस सा
लेकर अनन्त का
स्वरित राहदान सा !!!
मन के दरम्यान प्रफुलित
हर अरमान मुझको ,
रंगीनियों में सजाकर
स्वपन डोली में ,
इक रति अंकुर रहा हैं
ठहर जाती हु मैं
तेरी रुदादी लकीरों में ,
और उसपे तेरे
पैमानिक सी आशिकी
कितना बेबस सा
दिल की रुबाईयों पे भी
अंकुश धर जातें हैं
तुझमें मेरा होना
जैसे साँसों की करवटों पे
मेरी धडकनों का अलसाना
मेरे दिल की तराईयों में
हर पल तेरा स्पंदन हैं
लेकिन तुझमें मेरा होना
कितना बेबस सा ......
तेरे मेरे बीच ये
जो बनकर आया था बेनामी सा ,
अब मिली तो जमीं सी
तेरे ही सरहदी दिल के
कोनेभर में
तू परखता रहा
मेरे सुरूर का अंत
आखिर लौटा तू
कितना बेबस सा
लेकर अनन्त का
स्वरित राहदान सा !!!