रखना दिल में नमाज़ी नियत
तो
मुहब्बत करना !
होना खुद से जुदा
तो
मुहब्बत करना !
हो बरगद जैसी छावनी
तो
मुहब्बत करना !
शिदत हो गर दिया बाती जैसा ,
तो
मुहब्बत करना!
मुस्कानों में हो नमीं पनघट की ,
तो
मुहब्बत करना !
तन में हो खुशबूँ गंधक की
तो
मुहब्बत करना!
गर बाँच सकों कल्माई ऑंखें
तो
मुहब्बत करना !
बना सको जिगर शिखर में मंदिर
तो
मुहब्बत करना !
हो जबां अशिर्बादी
तो
मुहब्बत करना!
हो रूह तक चौधवी चमक
तो
मुहब्बत करना !
चल सकों राह से राह तक
तो
मुहब्बत करना !
जो समां सके इक ग्रन्थ में
ये वो सज्दां नही ,
मिल सके अंत छितीज
ये वो त्रिलोक नही
हो हर मन राधा रमण
करें हर दिल बस ऐसी ही
पाकिजी मुहब्बत
हर कही हर तरफ .......
..गर अंतर्मन सच्चा हो ..तो ..
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