कितना प्यारा ये अह्सास है,
जो बिजली से मुझे बरखा बनता हैं ।
हर पल हर कही तुम्हें मेरे साथ पिरोता है
अपने नयनों के तीखे विचारों से ,
लगाई बेड़ियाँ हमने ,इन अहसासों के पंखों पर '
जाने कब ये बेड़िया पाज़ेब बनी
"और "
तुम्हें छूकर ये अहसास ,बिन सावन फुहारों के झूले झूलता हैं ।
कितना प्यारा है ये अहसास .........
निगोड़ी इन अहसासों का बावला मन तो देखो ;
वही छनकती हैं इनकी पाज़ेब ''
जिनसे पर्दा कर कोताहल करती हैं ।
धिरे धिरे रेशमी रातों में,
मंतरंग में सपनों की डोली सजाती हैं "
' और "
चुपके के से अलसाई नींद विहल में हलचल मचाकर ,,
हौले से कह जाती है ..
कितना प्यारा ये अहसास है ,
जो बिजली से मुझे बरखा बनता है
की हमने तामाम कोशिशे ,,,,,,
की न छू; सके हमे उन बेहोश नाजरों का ख़ुमार ,
' पर'
ये अहसास बस एक बूंद बनकर ,
बंध गया हमारे दुपट्टे के कोने से ,
जैसे ही दुपट्टे के कोने से .........आँखें थप थपाई हमने ,,
आँखों से उतरकर बूंद दिल में सागर बन गया,
'और' तब से ही ये आलम है
हम अपने ही अह्सासी बारिश में भिंग कर सराबोर हो रहे हैं
अब ये सैलाब कहाँ ले जायेगा हमें ??
ये तो शायरी ऐं ग़ालिब तेरे हवाले ।
कितना प्यारा ये अहसास है ....
जो मुझे बिजली से बरखा बनता है ..........
ये कैसी खुशबू सी है फैली , हमारे सिरहाने के तले,,
कजराई कवारें तराईयों में ...
अभी भी छलक रहा है वो पैमाना कवारा कवारा'
नही जानती ये आँखें ...
कितने बरस हैं और अभी,
इन आँखों में की तराईयों में ,,, ये कवारी काजलें ?
जो बिखरकर मोती से नूर की बूंद बन गयी,
जो इकतर्फा प्यार की मेंहदी रचाकर ,
इश्किया तेरे आँगन में रंगों से भरी तस्वीर बन गयी,
होगी कोई तो हद इन बाँवरे अहसासों के..........
उस हद की हद तक ,तकेगे राह ये कोने दुपट्टे के ,
पीले सरसों के पायल किसी दिन तो छ्नकेगे ,
होगी किसी दिन तो चूड़ियों की रंग सुर्ख ,
होगा किसी दिन पूरा सावन मेरी घंरायी बादलों में ,
हैं अभी तलक और रहेंगे ......प्यार के कशक में
मेरी तराईयों में ये काजल, और मेरे दुपट्टे कवारें ,,
कितना प्यारा ये अहसास है
जो बिजली मुझे बरखा बनता हैं।
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उस हद की हद तक, तकेगे राह ये कोने दुपट्टे के ,
ReplyDeleteपीले सरसों के पायल किसी दिन तो छ्नकेगे...
बहुत ही खूबसूरत और निश्चल एहसास के साथ लिखी गयी पोस्ट...